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सोमवार, 30 जनवरी 2023

अद्यतनं सुभाषितम्


    


अद्यतनं सुभाषितम् 

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते  सतः।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।।

 अर्थात;-

 शरीर उत्पत्तिके पहले भी नहीं था, मरनेके बाद भी नहीं रहेगा और वर्तमानमें भी इसका क्षण-प्रतिक्षण अभाव हो रहा है। 

तात्पर्य है कि यह शरीर भूत, भविष्य और वर्तमान -- इन तीनों कालोंमें कभी भावरूपसे नहीं रहता। अतः यह असत् है। इसी तरहसे इस संसारका भी भाव नहीं है, यह भी असत् है। लेकिन आत्मा सत है ।आत्मा शरीर के मरने से पहले भी थी, शरीर के न होने के बाद भी रहेगी।

 आत्मा का कभी नाश नहीं होता। आत्मा अजर है, अमर है।  प्राणी एक शरीर से दूसरे शरीर में चला जाता है। मृत्यु सिर्फ शरीर की होती है ।

आत्मा हमेशा जीवित ही रहती है। इसलिए ज्ञानी लोग इस विषय में शोक नहीं करते। इसलिये शरीरके परिवर्तनसे संसारमात्रके परिवर्तनका अनुभव होता है।

।। गीता।।




अद्यतन-सूक्ति

  "सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।