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हार और जीत की परिभाषा
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टीचर ने सीटी बजाई और स्कूल के मैदान पर 50 छोटे - छोटे बालक-बालिकाएँ दौड़ पड़े।सबका एक ही लक्ष्य है- मैदान के छोर पर पहुँचकर पुनः वापस लौट आना।
सर्वप्रथम तीन को पुरस्कार। इन तीन में से कम से कम एक स्थान प्राप्त करने की सारी भागदौड़।
सभी बच्चों के माता-पिता भी उपस्थित थे तो इसलिए उत्साह जरा ज्यादा ही था।
मैदान के छोर पर पहुँचकर बच्चे जब वापसी के लिए दौड़े तो पलकों में "और तेज...और तेज... " का तेज स्वर उठा। प्रथम तीन बच्चों ने आनंद से अपने-अपने माता-पिता की ओर हाथ लहराए।
चौथे और पाँचवे अधिक परेशान थे, कुछ के तो माता-पिता भी नाराज दिख रहे थे।
उनके भी बाद वाले बच्चे, इनाम तो मिलना नहीं सोचकर, दौड़ना छोड़कर चलने भी लग गए थे।
शीघ्र ही दौड़ खत्म हुई और पांचवे स्थान पर आई वो छोटी-सी बच्ची नाराज चेहरा लिए अपने पिता की ओर दौड़ गयी।
पिता ने आगे बढ़कर अपनी बेटी को गोद में उठा लिया और बोले - " शाबाश बिटिया शाबाश !!!!!....चलो चलकर कहीं, आइसक्रीम खाते हैं। कौन-सी आइसक्रीम खाएगी हमारी बिटिया रानी ? "
" लेकिन पिता जी, मेरा प्रथम स्थान कहाँ आया ? " बच्ची ने आश्चर्य से पूछा।
" आया है बिटिया, प्रथम स्थान आया है तुम्हारा। "
" ऐसे कैसे पिता जी, मेरा तो पांचवाँ स्थान आया ना ? " बच्ची बोली।
" अरे बेटा, तुम्हारे पीछे कितने बच्चे थे ? "
थोड़ा जोड़ घटाकर वो बोली : " 45 बच्चे। "
" इसका मतलब उन 45 बच्चों से आगे तुम पहली थीं, इसीलिए तुम्हें आइसक्रीम का इनाम। "
" और मेरे आगे आए 4 बच्चे ? " परेशान-सी बच्ची बोली।इस बार उनसे हमारी प्रतियोगिता नहीं थी। क्यों ?
" क्योंकि उन्होंने अधिक तैयारी की हुई थी। अब हम भी फिर से बढ़िया अभ्यास करेंगे। अगली बार तुम 48 में प्रथम और फिर उसके बाद 50 में प्रथम रहोगी। क्या ऐसा हो सकता है पिता जी ?
हाँ बिटिया, ऐसा ही होता है।तब तो अगली बार ही खूब तेज दौड़कर प्रथम आ जाऊंगी। बच्ची बड़े उत्साह से बोली।इतनी जल्दी क्यों बिटिया? पैरों को मजबूत होने दो, और हमें खुद से आगे निकलना है, दूसरों से नहीं। पिता ने कहा। बेटी को बहुत अच्छे से समझ तो नहीं आया लेकिन फिर भी वो बड़े विश्वास से बोली -" जैसा आप कहें, पिता जी। "अरे ,अब आइसक्रीम तो बताओ ? पिता मुस्कुराते हुए बोले।
एक नए आनंद से भरी, 45 बच्चों में प्रथम के आत्मविश्वास से जगमग, पिता की गोद में शान से हँसती बेटी बोली ,- " मुझे बटरस्कॉच आइसक्रीम चाहिए। "
क्या अपने बच्चों के परिणाम के समय हम सभी माता-पिता का व्यवहार कुछ ऐसा ही नहीं होना चाहिए ?....विचार अवश्य करें और सभी माता-पिता तक जरूर पहुंचायें।
इसी कहानी के परिप्रेक्ष्य में अपने जीवन को भी देखें कि हम भी अपनी और अपने बच्चों की उपलब्धियों से कितने सन्तुष्ट हैं?
अपने विचार comment में अवश्य लिखिएगा।
थोड़ा ज्यादा या थोड़ा काम ! क्या वाकई बहुत फर्क पड़ता है इससे ? 🙏