अद्यतनं सुभाषितम्
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं ,
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति ।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं ,
सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ।।
अर्थात् सज्जनों की संगति बुद्धि की जड़ता को दूर करती है, वाणी में सत्य सींचती है अर्थात् सच बोलना सिखाती है।सम्मान-प्रतिष्ठा उन्नति करती है और सभी दिशाओं में कीर्ति फैलाती है।बताओ सत्सङ्गति मनुष्यों का क्या उपकार नहीं करती अर्थात् सब कुछ करती है।