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शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

सुभाषितम्

 

         अद्यतनं सुभाषितम् 

जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं ,
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति ।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं , 
सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ।।
 
अर्थात्  सज्जनों की संगति बुद्धि की जड़ता को दूर करती है, वाणी में सत्य सींचती है अर्थात् सच बोलना सिखाती है।सम्मान-प्रतिष्ठा उन्नति करती है और सभी दिशाओं में कीर्ति फैलाती है।बताओ सत्सङ्गति मनुष्यों का क्या उपकार नहीं करती अर्थात् सब कुछ करती है।





अद्यतन-सूक्ति

  "सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।