मकरसन्क्रांतेः शुभाशयाः
भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते ।
तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये ।।
जैसे मकर राशि में सूर्य का तेज बढ़ता है, उसी तरह आपके स्वास्थ्य और समृद्धि की हम कामना करते हैं ।
संस्कृत भाषा भारत की आत्मा के रूप में ,प्राण के रूप में धर्म एवं संस्कृति हैं। अनादिकाल से संस्कृत ही संस्कृति की वाहिका है।अतः संस्कृत हमारी सांस्कृतिक भाषा है।
"सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें