Followers

बुधवार, 26 जनवरी 2022

विष्णोः वन्दना

                  विष्णुः 

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।१।।

अर्थात् वसुदेव के पुत्र,कंस और चाणूर नामक राक्षसों के वधकर्ता, देवकी को परमानन्द देने वाले इस जगत् के गुरु भगवान् कृष्ण का मैं वन्दन करती हूं।

शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्। प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।।

अर्थात् शुभ्रवस्त्र परिधान क्रिये हुए, चन्द्रमा के समान प्रकाशमान ,चार भुजाओं वाले प्रसन्नमुख वाले भगवान् विष्णु का सभी बाधाओं के शमन (समाप्ति) के लिए ध्यान करना चाहिए।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अद्यतन-सूक्ति

  "सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।