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बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

अद्यतनं सुभाषितम्

 





     अद्यतनं सुभाषितम् 

कल्पद्रुमः कल्पितमेव सूते, 
सा कामधुक् कामितमेव दोग्धि ।
चिन्तामणिः चिन्तितं एव दत्ते ,
सतां हि  सङ्गः सकलं प्रसूते।।

अर्थात् कल्पवृक्ष कल्पना किया हुआ ही देता है, कामधेनु इच्छित वस्तु ही देती है, चिन्तामणि जिसका चिन्तन करते हैं ,वहीं देता है लेकिन सत्संग तो  सब कुछ ही देता है।

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अद्यतन-सूक्ति

  "सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।