अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
अर्थात् जिसने अज्ञानरूपी अन्धकार हे अन्धी हुई मेरी आंखों को ज्ञान रूपी काजल की रेखा से खोला है उस गुरु को मेरा नमस्कार है।
संस्कृत भाषा भारत की आत्मा के रूप में ,प्राण के रूप में धर्म एवं संस्कृति हैं। अनादिकाल से संस्कृत ही संस्कृति की वाहिका है।अतः संस्कृत हमारी सांस्कृतिक भाषा है।
"सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।