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शनिवार, 15 जनवरी 2022

भगवान का घर

 *👉🌷 भगवान का घर 🌷👈*

कल दोपहर मैं बैंक में गया था।वहाँ एक बुजुर्ग भी अपने काम से आये थे।वहाँ वह कुछ ढूंढ रहे थे। मुझे लगा कि शायद उन्हें पेन चाहिये। इसलिये उनसे पूछा तो, वह बोले- बीमारी के कारण मेरे हाथ कांप रहे हैं और मुझे पैसे निकालने की स्लिप भरनी है उसके लिये मैं देख रहा हूँ कि कोई मदद कर दे।

मैं बोला - आपको कोई हर्ज न हो तो मैं आपकी  स्लिप  भर देता हूँ।

उन्होंने मुझे स्लिप भरने की अनुमति दे दी। मैंने उनसे पूछकर स्लिप भर दी।

रकम निकाल कर उन्होंने मुझसे पैसे गिनने को कहा - मैंने पैसे भी गिन दिये।

हम दोनों एक साथ ही बैंक से बाहर आये तो, बोले - साॅरी तुम्हें थोड़ा कष्ट तो होगा परन्तु मुझे रिक्शा करवा दो। इस भरी दोपहरी में   रिक्शा मिलना बडा़ कष्टकारी होता है।

मैं बोला - मुझे भी उसी तरफ जाना है, मैं तुम्हें कार से घर छोड़ देता हूँ।

वह तैयार हो गये। हम उनके घर पहुंचे। '60' × 100' के प्लाट पर बना हुआ घर क्या बंगला कह सकते हो।घर में उनकी वृद्ध पत्नी थीं। वह थोड़ी डर गई कि इनको कुछ हो तो नहीं गया जिससे उन्हें छोड़ने एक अपरिचित व्यक्ति घर तक आया है।फिर उन्होंने पत्नी के चेहरे पर आये भावों को पढ़कर कहा कि "चिंता की कोई बात नहीं, यह मुझे छोड़ने आये हैं।"फिर बातचीत में ,वह बोले "इस भगवान के घर में हम दोनों पति-पत्नी ही रहते हैं।हमारे बच्चे तो विदेश में रहते हैं।

मैंने जब उन्हें भगवान के घर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि "हमारे परिवार में *भगवान का घर* कहने की पुरानी परंपरा है। इसके पीछे की भावना है कि यह घर भगवान का है और हम उस घर में रहते हैं। जबकि लोग कहते हैं कि "घर हमारा है और भगवान हमारे घर में रहते हैं।

मैंने विचार किया कि दोनों कथनों में कितना अंतर है। तदुपरांत वह बोले...

"भगवान का घर" बोला तो अपने से कोई नकारात्मक कार्य नहीं होते और हमेशा सद्विचारों से ओत- प्रोत रहते हैं।

बाद में मजाकिया लहजे में बोले - लोग मृत्यु उपरान्त भगवान के घर जाते हैं परन्तु हम तो जीते जी ही भगवान के घर का आनंद ले रहे हैं।

यह वाक्य ही जैसे भगवान ने दिया कोई प्रसाद ही है।

भगवान ने ही मुझे उनको घर छोड़ने की प्रेरणा दी।घर भगवान का और हम उनके घर में रहते हैं।

यह वाक्य बहुत दिनों तक मेरे दिमाग में घूमता रहा, सही में कितने अलग विचार थे! 

 उपरोक्त प्रसंग से प्रेरित होकर अगर हम इस पर अमल करेंगे तो हमारे और आनेवाली पीढ़ियों के विचार भी वैसे ही होगा।

"अच्छे कार्य का प्रारंभ जब भी करो वहीं नई सुबह है।"   

          *🙏 *🙏🏼

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अद्यतन-सूक्ति

  "सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।