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रविवार, 16 जनवरी 2022

सुभाषितम्

                    अद्यतनसुभाषितम्          उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।

अर्थात् जिस प्रकार सोये हुए शेर के मुख में पशु स्वयं प्रवेश नहीं करते वैसे ही केवल इच्छा करने से कार्य सिद्ध नहीं होते,मेहनत करने  से ही होते हैं।

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अद्यतन-सूक्ति

  "सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।