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सोमवार, 2 मई 2022

सुभाषितम्


         अद्यतनं सुभाषितम् 

निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु,

लक्ष्मीःसमाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।

अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,

न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।।

अर्थात् भले ही नीति में निपुण (लोग) निन्दा करें या स्तुति , लक्ष्मी आ जाये या इच्छानुसार चली जाए,आज ही मरण हो या युगों के बाद (मरें), धैर्यशाली (लोगों) के पैर न्याय के मार्ग से विचलित नहीं होते हैं।

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अद्यतन-सूक्ति

  "सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।