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बुधवार, 18 मई 2022

सुभाषितम्


        अद्यतनं सुभाषितम् 

साहित्य-संगीत-कला-विहीनः, साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः तद् भागधेयं परमं पशूनाम्।।

अर्थात् जो मनुष्य साहित्य, संगीत,कला से हीन है वह बिना सींग, पूँछ वाला साक्षात् पशु है।वह घास न खाता हुए भी जी रहा है,यह पशुओं का बहुत बड़ा  सौभाग्य है।

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अद्यतन-सूक्ति

  "सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।