संस्कृत भाषा भारत की आत्मा के रूप में ,प्राण के रूप में धर्म एवं संस्कृति हैं। अनादिकाल से संस्कृत ही संस्कृति की वाहिका है।अतः संस्कृत हमारी सांस्कृतिक भाषा है।
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रविवार, 30 जनवरी 2022
सुभाषितम्
अद्यतनसुभाषितम्
आचार्यात् पादमादत्ते पादं शिष्यः स्वमेधया।पादं सब्रह्मचारिभ्यः पादं कालक्रमेण च।।
अर्थात् विद्यार्थी चौथाई आचार्य से सीखता है,अपनी बुद्धि से चौथाई, अपने साथ पढ़ने वालों से चौथाई और शेष चौथाई कालक्रम से सीखता है।
शनिवार, 29 जनवरी 2022
सुभाषितम्
अद्यतनसुभाषितम्
सदयं हृदयं यस्य भाषितं सत्यभूषितम्। कायः परहिते यस्य कलिस्तस्य करोति किम्।
अर्थात् जिसके हृदय में दया है,जिसकी वाणी सत्य से सुशोभित है जिसका शरीर परहित में लगा हुआ है,कलि भी उसका क्या बिगाड़ सकता है।
शिव-वन्दना
शिवः
हरः पापानि हस्तात् शिवो दत्तां सदा शिवम्।न जानामिति नो ब्रूयात् सर्वज्ञपदभाग् यतः।।
शिवं शिवकरं शान्तं शिवात्मानं शिवोत्तमम्।शिवमार्गप्रणेतारं प्रणतोऽस्मि सदा शिवम्।।
बुधवार, 26 जनवरी 2022
विष्णोः वन्दना
विष्णुः
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।१।।
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्। प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।।
गणेश-वन्दना
गणेशः
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।१।।
गजाननं भूतगणादि सेवितं, कपित्थजम्बूफलसारभक्षकम्।
उमासुतं शोक विनाशकारणं, नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।।२।।
सुभाषितम्
अद्यतनसुभाषितानि
न कश्चिदपि जानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्।।
मंगलवार, 18 जनवरी 2022
हम किसी से कम नहीं
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हार और जीत की परिभाषा
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टीचर ने सीटी बजाई और स्कूल के मैदान पर 50 छोटे - छोटे बालक-बालिकाएँ दौड़ पड़े।सबका एक ही लक्ष्य है- मैदान के छोर पर पहुँचकर पुनः वापस लौट आना।
सर्वप्रथम तीन को पुरस्कार। इन तीन में से कम से कम एक स्थान प्राप्त करने की सारी भागदौड़।
सभी बच्चों के माता-पिता भी उपस्थित थे तो इसलिए उत्साह जरा ज्यादा ही था।
मैदान के छोर पर पहुँचकर बच्चे जब वापसी के लिए दौड़े तो पलकों में "और तेज...और तेज... " का तेज स्वर उठा। प्रथम तीन बच्चों ने आनंद से अपने-अपने माता-पिता की ओर हाथ लहराए।
चौथे और पाँचवे अधिक परेशान थे, कुछ के तो माता-पिता भी नाराज दिख रहे थे।
उनके भी बाद वाले बच्चे, इनाम तो मिलना नहीं सोचकर, दौड़ना छोड़कर चलने भी लग गए थे।
शीघ्र ही दौड़ खत्म हुई और पांचवे स्थान पर आई वो छोटी-सी बच्ची नाराज चेहरा लिए अपने पिता की ओर दौड़ गयी।
पिता ने आगे बढ़कर अपनी बेटी को गोद में उठा लिया और बोले - " शाबाश बिटिया शाबाश !!!!!....चलो चलकर कहीं, आइसक्रीम खाते हैं। कौन-सी आइसक्रीम खाएगी हमारी बिटिया रानी ? "
" लेकिन पिता जी, मेरा प्रथम स्थान कहाँ आया ? " बच्ची ने आश्चर्य से पूछा।
" आया है बिटिया, प्रथम स्थान आया है तुम्हारा। "
" ऐसे कैसे पिता जी, मेरा तो पांचवाँ स्थान आया ना ? " बच्ची बोली।
" अरे बेटा, तुम्हारे पीछे कितने बच्चे थे ? "
थोड़ा जोड़ घटाकर वो बोली : " 45 बच्चे। "
" इसका मतलब उन 45 बच्चों से आगे तुम पहली थीं, इसीलिए तुम्हें आइसक्रीम का इनाम। "
" और मेरे आगे आए 4 बच्चे ? " परेशान-सी बच्ची बोली।इस बार उनसे हमारी प्रतियोगिता नहीं थी। क्यों ?
" क्योंकि उन्होंने अधिक तैयारी की हुई थी। अब हम भी फिर से बढ़िया अभ्यास करेंगे। अगली बार तुम 48 में प्रथम और फिर उसके बाद 50 में प्रथम रहोगी। क्या ऐसा हो सकता है पिता जी ?
हाँ बिटिया, ऐसा ही होता है।तब तो अगली बार ही खूब तेज दौड़कर प्रथम आ जाऊंगी। बच्ची बड़े उत्साह से बोली।इतनी जल्दी क्यों बिटिया? पैरों को मजबूत होने दो, और हमें खुद से आगे निकलना है, दूसरों से नहीं। पिता ने कहा। बेटी को बहुत अच्छे से समझ तो नहीं आया लेकिन फिर भी वो बड़े विश्वास से बोली -" जैसा आप कहें, पिता जी। "अरे ,अब आइसक्रीम तो बताओ ? पिता मुस्कुराते हुए बोले।
एक नए आनंद से भरी, 45 बच्चों में प्रथम के आत्मविश्वास से जगमग, पिता की गोद में शान से हँसती बेटी बोली ,- " मुझे बटरस्कॉच आइसक्रीम चाहिए। "
क्या अपने बच्चों के परिणाम के समय हम सभी माता-पिता का व्यवहार कुछ ऐसा ही नहीं होना चाहिए ?....विचार अवश्य करें और सभी माता-पिता तक जरूर पहुंचायें।
इसी कहानी के परिप्रेक्ष्य में अपने जीवन को भी देखें कि हम भी अपनी और अपने बच्चों की उपलब्धियों से कितने सन्तुष्ट हैं?
अपने विचार comment में अवश्य लिखिएगा।
थोड़ा ज्यादा या थोड़ा काम ! क्या वाकई बहुत फर्क पड़ता है इससे ? 🙏
सोमवार, 17 जनवरी 2022
बीता हुआ कल
*⚜️ आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️*
*!! बीता हुआ कल !!*
एक संत एक गाँव में उपदेश दे रहे थे. उन्होंने कहा कि “हर किसी को धरती माता की तरह सहनशील तथा क्षमाशील होना चाहिए। क्रोध ऐसी आग है जिसमें क्रोध करनेवाला दूसरों को जलाएगा तथा खुद भी जल जाएगा.”
सभा में सभी शान्ति से संत की वाणी सुन रहे थे, लेकिन वहाँ स्वभाव से ही अतिक्रोधी एक ऐसा व्यक्ति भी बैठा हुआ था जिसे ये सारी बातें बेबुनियाद लग रहीं थीं। वह कुछ देर ये सब सुनता रहा,फिर अचानक ही आग- बबूला होकर बोलने लगा, “तुम पाखंडी हो।बड़ी-बड़ी बातें करना यहीं तुम्हारा काम है। तुम लोगों को भ्रमित कर रहे हो। तुम्हारी ये बातें आज के समय में कोई मायने नहीं रखतीं “
ऐसे कई कटु वचनों को सुनकर भी संत शांत रहे. अपनी बातों से ना तो वह दुःखी हुए और ना ही कोई प्रतिक्रिया की।यह देखकर वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उसने संत के मुंह पर थूक कर वहाँ से चला गया।
अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ तो उसे अपने बुरे व्यवहार के कारण पछतावे की आग में जलने लगा और वह उन्हें ढूंढते हुए उसी स्थान पर पहुंचा , पर संत कहाँ मिलते वह तो अपने शिष्यों के साथ पास वाले एक अन्य गाँव निकल चुके थे ।
व्यक्ति ने संत के बारे में लोगों से पूछा और ढूंढते-ढूंढते जहाँ संत प्रवचन दे रहे थे ,वहाँ पहुँच गया। उन्हें देखते ही वह उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला , “मुझे क्षमा कीजिए प्रभु !”
संत ने पूछा : कौन हो भाई ? तुम्हे क्या हुआ है ? क्यों क्षमा मांग रहे हो ?”
उसने कहा : “क्या आप भूल गए? .. मैं वहीं हूँ जिसने कल आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था।मैं शर्मिन्दा हूँ एवं मेरे दुष्ट आचरण की क्षमायाचना करने आया हूँ।”
संत ने प्रेमपूर्वक कहा : “बीता हुआ कल तो मैं वहीं छोड़कर आ गया और तुम अभी भी वहीं अटके हुए हो। तुम्हे अपनी गलती का आभास हो गया , तुमने पश्चाताप कर लिया और तुम निर्मल हो चुके हो ।अब तुम आज में प्रवेश करो. बुरी बातें तथा बुरी घटनाएँ याद करते रहने से वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ते जाते हैं। बीते हुए कल के कारण आज को मत बिगाड़ो।”
उस व्यक्ति का सारा बोझ उतर गया। उसने संत के चरणों में पड़कर क्रोध , त्याग तथा क्षमाशीलता का संकल्प लिया। संत ने उसके मस्तिष्क पर आशीष का हाथ रखा।उस दिन से उसमें परिवर्तन आ गया, और उसके जीवन में सत्य, प्रेम व करुणा की धारा बहने लगी।
*शिक्षा:-*
मित्रों! बहुत बार हम भूत में की गयी किसी गलती के बारे में सोच कर बार-बार दुखी होते और खुद को कोसते हैं। हमें ऐसा कभी नहीं करना चाहिए, गलती का बोध हो जाने पर हमे उसे कभी ना दोहराने का संकल्प लेना चाहिए और एक नयी ऊर्जा के साथ वर्तमान को सुदृढ़ बनाना चाहिए।
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दीपप्रणाममन्त्रः
दीपज्योतिः परं ज्योतिःदीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोस्तुते।।१।।
शुभं करोतु कल्याणम् आरोग्यं सुखसम्पदः।
द्वेषबुद्धिविनाशाय ,दीपज्योतिर्नमोस्तुते।।२।।
आत्मज्योति प्रदीप्ताय, ब्रह्मज्योतिर्नमोस्तुते।
ब्रह्मज्योति प्रदीप्ताय गुरूज्योतिर्नमोस्तुते३।।
रविवार, 16 जनवरी 2022
समय का सदुपयोग
*⚜️ आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️*
*!! समय का सदुपयोग !!*
किसी गांव में एक व्यक्ति रहता था। वह बहुत ही भला था लेकिन उसमें एक दुर्गुण था वह हर काम को टाला करता था। वह मानता था कि जो कुछ होता है भाग्य से होता है।
एक दिन एक साधु उसके पास आया। उस व्यक्ति ने साधु की बहुत सेवा की। उसकी सेवा से खुश होकर साधु ने पारस पत्थर देते हुए कहा- मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हूं। इसलिय मैं तुम्हे यह पारस पत्थर दे रहा हूं। सात दिन बाद मै इसे तुम्हारे पास से ले जाऊंगा। इस बीच तुम जितना चाहो, उतना सोना बना लेना।
उस व्यक्ति को लोहा नही मिल रहा था। अपने घर में लोहा तलाश किया। थोड़ा सा लोहा मिला तो उसने उसी का सोना बनाकर बाजार में बेच दिया और कुछ सामान ले आया।
अगले दिन वह लोहा खरीदने के लिए बाजार गया, तो उस समय महंगा मिल रहा था यह देख कर वह व्यक्ति घर लौट आया।
तीन दिन बाद वह फिर बाजार गया तो उसे पता चला कि इस बार और भी महंगा हो गया है। इसलिए वह लोहा बिना खरीदे ही वापस लौट गया।
उसने सोचा-एक दिन तो जरुर लोहा सस्ता होगा। जब सस्ता हो जाएगा तभी खरीदेंगे। यह सोचकर उसने लोहा खरीदा ही नहीं।
आठवें दिन साधु पारस लेने के लिए उसके पास आ गए। व्यक्ति ने कहा- मेरा तो सारा समय ऐसे ही निकल गया। अभी तो मैं कुछ भी सोना नहीं बना पाया। आप कृपया इस पत्थर को कुछ दिन और मेरे पास रहने दीजिए। लेकिन साधु राजी नहीं हुए।
साधु ने कहा-तुम्हारे जैसा आदमी जीवन में कुछ नहीं कर सकता। तुम्हारी जगह कोई और होता तो अब तक पता नहीं क्या-क्या कर चुका होता। जो आदमी समय का उपयोग करना नहीं जानता, वह हमेशा दु:खी रहता है। इतना कहते हुए साधु महाराज पत्थर लेकर चले गए।
*शिक्षा*
जो व्यक्ति काम को टालता रहता है, समय का सदुपयोग नहीं करता और केवल भाग्य भरोसे रहता है वह हमेशा दुःखी रहता है..।।अतः कहा भी गया है-
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
सुभाषितम्
अद्यतनसुभाषितम् उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
गुरु-वन्दना
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
शनिवार, 15 जनवरी 2022
भगवान का घर
*👉🌷 भगवान का घर 🌷👈*
कल दोपहर मैं बैंक में गया था।वहाँ एक बुजुर्ग भी अपने काम से आये थे।वहाँ वह कुछ ढूंढ रहे थे। मुझे लगा कि शायद उन्हें पेन चाहिये। इसलिये उनसे पूछा तो, वह बोले- बीमारी के कारण मेरे हाथ कांप रहे हैं और मुझे पैसे निकालने की स्लिप भरनी है उसके लिये मैं देख रहा हूँ कि कोई मदद कर दे।
मैं बोला - आपको कोई हर्ज न हो तो मैं आपकी स्लिप भर देता हूँ।
उन्होंने मुझे स्लिप भरने की अनुमति दे दी। मैंने उनसे पूछकर स्लिप भर दी।
रकम निकाल कर उन्होंने मुझसे पैसे गिनने को कहा - मैंने पैसे भी गिन दिये।
हम दोनों एक साथ ही बैंक से बाहर आये तो, बोले - साॅरी तुम्हें थोड़ा कष्ट तो होगा परन्तु मुझे रिक्शा करवा दो। इस भरी दोपहरी में रिक्शा मिलना बडा़ कष्टकारी होता है।
मैं बोला - मुझे भी उसी तरफ जाना है, मैं तुम्हें कार से घर छोड़ देता हूँ।
वह तैयार हो गये। हम उनके घर पहुंचे। '60' × 100' के प्लाट पर बना हुआ घर क्या बंगला कह सकते हो।घर में उनकी वृद्ध पत्नी थीं। वह थोड़ी डर गई कि इनको कुछ हो तो नहीं गया जिससे उन्हें छोड़ने एक अपरिचित व्यक्ति घर तक आया है।फिर उन्होंने पत्नी के चेहरे पर आये भावों को पढ़कर कहा कि "चिंता की कोई बात नहीं, यह मुझे छोड़ने आये हैं।"फिर बातचीत में ,वह बोले "इस भगवान के घर में हम दोनों पति-पत्नी ही रहते हैं।हमारे बच्चे तो विदेश में रहते हैं।
मैंने जब उन्हें भगवान के घर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि "हमारे परिवार में *भगवान का घर* कहने की पुरानी परंपरा है। इसके पीछे की भावना है कि यह घर भगवान का है और हम उस घर में रहते हैं। जबकि लोग कहते हैं कि "घर हमारा है और भगवान हमारे घर में रहते हैं।
मैंने विचार किया कि दोनों कथनों में कितना अंतर है। तदुपरांत वह बोले...
"भगवान का घर" बोला तो अपने से कोई नकारात्मक कार्य नहीं होते और हमेशा सद्विचारों से ओत- प्रोत रहते हैं।
बाद में मजाकिया लहजे में बोले - लोग मृत्यु उपरान्त भगवान के घर जाते हैं परन्तु हम तो जीते जी ही भगवान के घर का आनंद ले रहे हैं।
यह वाक्य ही जैसे भगवान ने दिया कोई प्रसाद ही है।
भगवान ने ही मुझे उनको घर छोड़ने की प्रेरणा दी।घर भगवान का और हम उनके घर में रहते हैं।
यह वाक्य बहुत दिनों तक मेरे दिमाग में घूमता रहा, सही में कितने अलग विचार थे!
उपरोक्त प्रसंग से प्रेरित होकर अगर हम इस पर अमल करेंगे तो हमारे और आनेवाली पीढ़ियों के विचार भी वैसे ही होगा।
"अच्छे कार्य का प्रारंभ जब भी करो वहीं नई सुबह है।"
*🙏 *🙏🏼
श्री राधा रानी के एक बार नाम लेने की कीमत - 🌹🌹🌷🌷
प्रेरक- प्रसंग
एक बार एक व्यक्ति था। वह एक संत जी के पास गयाऔर कहने लगा कि संत जी, मेरा एक बेटा है। वो न तो पूजा-पाठ करता है और न ही भगवान का नाम लेता है। आप कुछ ऐसा कीजिये कि उसका मन भगवान में लग जाये।संत जी कहते हैं- "ठीक है बेटा, एक दिन तुम उसे मेरे पास लेकर आ जाना।" अगले दिन वह व्यक्ति अपने बेटे को लेकर संत जी के पास गया। अब संत जी उसके बेटे से कहते है- "बेटा, बोल राधे राधे..."बेटा कहता है- मैं क्यूं कहूँ?संत जी कहते है- "बेटा बोल राधे राधे..."वो इसी तरह से मना करता रहा और अंत तक उसने यहीं कहा कि- "मैं क्यूं कहूँ राधे राधे...।"
संत जी ने कहा- जब तुम मर जाओगे और यमराज के पास जाओगे तब यमराज तुमसे पूछगे कि कभी भगवान का नाम लिया। कोई अच्छा काम किया। तब तुम कह देना कि मैंने जीवन में बस एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। इतना बताकर वह चले गए।
समय व्यतीत हुआ और एक दिन वो मर गया। यमराज के पास पहुंचा। यमराज ने पूछा- कभी कोई अच्छा काम किया है।
उसने कहा- हाँ महाराज, मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। आप उसकी महिमा बताइये।
यमराज सोचने लगा कि एक बार नाम की महिमा क्या होगी? इसका तो मुझे भी नहीं पता है। यम बोले- चलो, इंद्र के पास वो ही बतायेंगे,तो वो व्यक्ति बोला - मैं ऐसे नहीं जाऊंगा पहले पालकी लेकर आओ उसमें बैठ कर जाऊंगा।
यमराज ने सोचा ये बड़ी मुसीबत है। फिर भी पालकी मंगवाई गई और उसे बिठाया। 4 कहार (पालकी उठाने वाले) लग गए। वो बोला यमराज जी सबसे आगे वाले कहार को हटा कर उसकी जगह आप लग जाइये। यमराज जी ने ऐसा ही किया।
फिर सब मिलकर इंद के पास पहुंचे और बोले कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है?
इंद्र बोले- महिमा तो बहुत है। परन्तु क्या है? ये मुझे भी नहीं मालूम। चलो ब्रह्मा जी को पता होगा ,वो ही बतायेंगे।
वह व्यक्ति बोला - इंद्र जी ऐसा है दूसरे कहार को हटा कर ,आप यमराज जी के साथ मेरी पालकी उठाइये। अब एक ओर यमराज पालकी उठा रहे हैं और दूसरी तरफ इंद्र लगे हुए हैं। ब्रह्मा जी के पास पहुंचे।
ब्रह्मा ने सोचा कि ऐसा कौन सा प्राणी ब्रह्मलोक में आ रहा है जो स्वयं इंद्र और यमराज पालकी उठा कर ला रहे हैं। ब्रह्मा के पास पहुंचे। सभी ने पूछा- कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है?
ब्रह्मा जी बोले- महिमा तो बहुत है पर वास्तविकता क्या है?यह मुझे भी नहीं पता। लेकिन हाँ, भगवान शिव जी को जरूर पता होगा।
वो व्यक्ति बोला कि तीसरे कहार को हटाइये और उसकी जगह ब्रह्मा जी आप लग जाइये। अब क्या करते? महिमा तो जाननी ही थी। अब पालकी के एक ओर यमराज हैं, दूसरी तरफ इंद्र और पीछे ब्रह्मा जी हैं। सब मिलकर भगवान शिव जी के पास गए और भगवान शिव से पूछा कि प्रभु 'श्री राधा रानी' के नाम की महिमा क्या है? केवल एक बार नाम लेने की महिमा आप कृपा करके बताइये।
भगवान शिव बोले कि मुझे भी नहीं पता। लेकिन भगवान विष्णु जी को जरूर पता होगी। वो व्यक्ति शिव जी से बोला कि अब आप भी पालकी उठाने में लग जाइये। इस प्रकार ब्रह्मा, शिव, यमराज और इंद्र चारों उस व्यक्ति की पालकी उठाने में लग गए और विष्णु जी के लोक पहुंचे। विष्णु से जी पूछा कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है?
विष्णु जी बोले- अरे! जिसकी पालकी को स्वयं मृत्यु का राजा यमराज, स्वर्ग का राजा इंद्र, ब्रह्म लोक के राजा ब्रह्मा और साक्षात् भगवान शिव उठा रहे हों। इससे बड़ी महिमा क्या होगी? जब सिर्फ एक बार 'श्री राधा रानी' नाम लेने के कारण, आपने इसको पालकी में उठा ही लिया है,तो अब ये मेरी गोद में बैठने का अधिकारी हो गया है।भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि जो केवल ‘रा’ बोलते है तो मैं सब काम छोड़ कर खड़ा हो जाता हूँ और जैसे ही कोई ‘धा’ शब्द का उच्चारण करता है तो मैं उसकी ओर दौड़ लगा कर उसे अपनी गोद में भर लेता हूं।
💐💐💐💐💐
गुरुवार, 13 जनवरी 2022
ज्ञान की पहचान ☝🏻
🌝 * प्रेरणादायक कहानी*📖
किसी जंगल में एक संत महात्मा रहते थे। सन्यासियों वाली वेशभूषा थी और बातों में सदाचार का भाव, चेहरे पर इतना तेज था कि कोई भी इंसान उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था।
एक बार जंगल में शहर का एक व्यक्ति आया और वो जब महात्मा जी की झोपड़ी से होकर गुजरा तो देखा बहुत से लोग महात्मा जी के दर्शन करने आये हुए थे। वो महात्मा जी के पास गया और बोला कि आप अमीर भी नहीं हैं, आपने महंगे कपडे भी नहीं पहने हैं,आपको देखकर मैं बिल्कुल प्रभावित नहीं हुआ।फिर ये इतने सारे लोग आपके दर्शन करने क्यों आते हैं ?
महात्मा जी ने उस व्यक्ति को अपनी एक अंगूठी उतार कर दी और कहा कि आप इसे बाजार में बेच कर इसके बदले में एक सोने की माला लेकर आएं।
अब वो व्यक्ति बाजार गया और सब की दुकान पर जाकर उस अंगूठी के बदले सोने की माला मांगने लगा। लेकिन सोने की माला तो क्या उस अंगूठी के बदले कोई पीतल का एक टुकड़ा भी देने को तैयार नहीं था।
थक-हार कर व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास पहुंचा और बोला कि इस अंगूठी की तो कोई कीमत ही नहीं है।
महात्मा जी मुस्कुराये और बोले कि अब इस अंगूठी को सुनार गली में जौहरी की दुकान पर ले जाओ। वह व्यक्ति जब सुनार की दुकान पर गया तो सुनार ने एक माला नहीं बल्कि अंगूठी के बदले पांच माला देने को कहा।
वह व्यक्ति बड़ा हैरान हुआ कि इस मामूली से अंगूठी के बदले कोई पीतल की माला देने को तैयार नहीं हुआ लेकिन ये सुनार कैसे 5 सोने की माला दे रहा है।
व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास गया और उनको सारी बातें बतायीं।
अब महात्मा जी बोले कि चीजें जैसी ऊपर से दिखती हैं, अंदर से वैसी नहीं होती। ये कोई मामूली अंगूठी नहीं है बल्कि ये एक हीरे की अंगूठी है जिसकी पहचान केवल सुनार ही कर सकता था।
इसलिए वह 5 माला देने को तैयार हो गया। ठीक वैसे ही मेरी वेशभूषा को देखकर तुम मुझसे प्रभावित नहीं हुए।लेकिन ज्ञान का प्रकाश लोगों को मेरी ओर खींच लाता है।व्यक्ति महात्मा जी की बातें सुनकर बड़ा शर्मिंदा हुआ।
कपड़ों से व्यक्ति की पहचान नहीं होती बल्कि आचरण और ज्ञान से व्यक्ति की पहचान होती है..!!
नित याद करो मन से परमात्मा को☝🏻
💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕
मकरसन्क्रांतेः शुभाशयाः
मकरसन्क्रांतेः शुभाशयाः
भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते ।
तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये ।।
जैसे मकर राशि में सूर्य का तेज बढ़ता है, उसी तरह आपके स्वास्थ्य और समृद्धि की हम कामना करते हैं ।
गुरु-वन्दना
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
सुभाषितम्
अद्यतनसुभाषितम्
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
अर्थात् यह मेरा है,यह पराया है,इस प्रकार की गणनाएं तो छोटे मन वाले लोग करते हैं,उदार चित्त वाले व्यक्तियों के लिए तो सारी पृथ्वी ही परिवार है।
दिव्यवाणी संस्कृत भाषा
संस्कृत से बनी English 🙏🌸🙏
मनु = मैन
पितर = फादर
मातर = मदर
भ्रातर =ब्रदर
स्वसा = सिस्टर
दुहितर = डाटर
सुनु = सन
विधवा = विडव्
अहम् = आई एम
मूष = माउस
ऋत =राइट
स्वेद = स्वेट (पसीना )
अंतर =अंडर (नीचे ,भीतर )
द्यौपितर = जुपिटर (आकाश , बृहष्पति)
पशुचर =पाश्चर (चरवाहा )
दशमलव =डेसिमल
ज्यामिति = ज्योमेट्री
पथ =पाथ (रास्ता )
नाम =नेम
वमन=vomity=उल्टी करना
द्वार > डोर (door)
हृत > हार्ट (heart)
द्वि > two
त्रि > three
पञ्च > penta > five
सप्त > hept > seven
अष्ट > oct > eight
नव > non > nine
दश > deca > ten
दन्त > dent
उष्ट्र > ostrich
गौ > cow
गम् > go
स्था > stay
अक्ष- axis
सप्त अम्बर- september
अष्ट अम्बर- october
नबं अम्बर- november
दशं अम्बर- december
इससे यह भी पता चलता है
की december
12वाँ नहीं 10वाँ महीना है
जो हिन्दी महीनों के अनूरूप है।
समिति-committee
संत -saint
टमाटर-tomato
समस्त भाषाएं संस्कृत की पुत्रियां हैं।इनके ८०% शब्द संस्कृत के शब्दों से ही बनें हैं।👍🙏🚩🚩
श्री साईंनाथ अष्टोत्तरशतनामावलिः
1. ॐ श्री सांईनाथाय नमः
2. ॐ श्री सांई लक्ष्मीनारायणाय नमः
3. ॐ श्री सांई कृष्णरामशिवमारुत्यादिरुपाय नमः
4. ॐ श्री सांई शेषशायिने नमः
5. ॐ श्री सांई गोदावरीतटशीलधीवासिने नमः
6. ॐ श्री सांई भक्तहृदालयाय नमः
7. ॐ श्री सांई सर्वहन्नीलाय नमः
8. ॐ श्री सांई भूतावासाय नमः
9. ॐ श्री सांई भूतभविष्यद्भाववर्जिताय नमः
10. ॐ श्री सांई कालातीताय नमः
11. ॐ श्री सांई कालाय नमः
12. ॐ श्री सांई कालकालाय नमः
13. ॐ श्री सांई कालदर्पदमनाय नमः
14. ॐ श्री सांई मृत्युञ्जयाय नमः
15. ॐ श्री सांई अमर्त्याय नमः
16. ॐ श्री सांई मर्त्याभयप्रदाय नमः
17. ॐ श्री सांई जीवाधाराय नमः
18. ॐ श्री सांई सर्वाधाराय नमः
19. ॐ श्री सांई भक्तावनसमर्थाय नमः
20. ॐ श्री सांई भक्तावनप्रतिज्ञाय नमः
21. ॐ श्री सांई अन्नवस्त्रदाय नमः
22. ॐ श्री सांई आरोग्यक्षेमदाय नमः
23. ॐ श्री सांई धनमांगल्यप्रदाय नमः
24. ॐ श्री सांई ऋद्धिसिद्धिदाय नमः
25. ॐ श्री सांई पुत्रमित्रकलत्रबन्धुदाय नमः
26. ॐ श्री सांई योगक्षेमवहाय नमः
27. ॐ श्री सांई आपद्बान्धवाय नमः
28. ॐ श्री सांई मार्गबन्धवे नमः
29. ॐ श्री सांई भुक्तिमुक्ति स्वर्गापवर्गदाय नमः
30. ॐ श्री सांई प्रियाय नमः
31. ॐ श्री सांई प्रीतिवर्धनाय नमः
32. ॐ श्री सांई अन्तर्यामिणे नमः
33. ॐ श्री सांई सच्चिदात्मने नमः
34. ॐ श्री सांई नित्यानंदाय नमः
35. ॐ श्री सांई परमसुखदाय नमः
36. ॐ श्री सांई परमेश्वराय नमः
37. ॐ श्री सांई परब्रह्मणे नमः
38. ॐ श्री सांई परमात्मने नमः
39. ॐ श्री सांई ज्ञानस्वरूपिणे नमः
40. ॐ श्री सांई जगतपित्रे नमः
41. ॐ श्री सांई भक्तानां मातृधातृपितामहाय नमः
42. ॐ श्री सांई भक्ताभयप्रदाय नमः
43. ॐ श्री सांई भक्तपराधीनाय नमः
44. ॐ श्री सांई भक्तानुग्रहकातराय नमः
45. ॐ श्री सांई शरणागतवत्सलाय नमः
46. ॐ श्री सांई भक्तिशक्तिप्रदाय नमः
47. ॐ श्री सांई ज्ञानवैराग्यदाय नमः
48. ॐ श्री सांई प्रेमप्रदाय नमः
49. ॐ श्री सांई संशयह्रदयदौर्बल्यपापकर्मवासनाक्षयकराय नमः
50. ॐ श्री सांई ह्रदयग्रंथिभेदकाय नमः
51. ॐ श्री सांई कर्मध्वंसिने नमः
52. ॐ श्री सांई शुद्धसत्वस्थिताय नमः
53. ॐ श्री सांई गुणातीतगुणात्मने नमः
54. ॐ श्री सांई अनंतकल्याणगुणाय नमः
55. ॐ श्री सांई अमितपराक्रमाय नमः
56. ॐ श्री सांई जयिने नमः
57. ॐ श्री सांई दुर्धर्षक्षोभ्याय नमः
58. ॐ श्री सांई अपराजिताय नमः
59. ॐ श्री सांई त्रिलोकेषु अविघातगतये नमः
60. ॐ श्री सांई अशक्यरहिताय नमः
61. ॐ श्री सांई सर्वशक्तिमूऐर्तये नमः
62. ॐ श्री सांई सुरुपसुन्दराय नमः
63. ॐ श्री सांई सुलोचनाय नमः
64. ॐ श्री सांई बहुरूपविश्वमूर्तये नमः
65. ॐ श्री सांई अरूपाव्यक्ताय नमः
66. ॐ श्री सांई अचिन्त्याय नमः
67. ॐ श्री सांई सूक्ष्माय नमः
68. ॐ श्री सांई सर्वन्तर्यामिणे नमः
69. ॐ श्री सांई मनोवागतीताय नमः
70. ॐ श्री सांई प्रेममूर्तये नमः
71. ॐ श्री सांई सुलभदुर्लभाय नमः
72. ॐ श्री सांई असहायसहायाय नमः
73. ॐ श्री सांई अनाथनाथदीनबन्धवे नमः
74. ॐ श्री सांई सर्वभारभृते नमः
75. ॐ श्री सांई अकर्मानेककर्मसुकर्मिणे नमः
76. ॐ श्री सांई पुण्यश्रवणकीर्तनाय नमः
77. ॐ श्री सांई तीर्थाय नमः
78. ॐ श्री सांई वासुदेवाय नमः
79. ॐ श्री सांई सतां गतये नमः
80. ॐ श्री सांई सत्परायणाय नमः
81. ॐ श्री सांई लोकनाथाय नमः
82. ॐ श्री सांई पावनानघाय नमः
83. ॐ श्री सांई अमृतांशवे नमः
84. ॐ श्री सांई भास्करप्रभाय नमः
85. ॐ श्री सांई ब्रह्मचर्यतपश्चर्यादिसुव्रताय नमः
86. ॐ श्री सांई सत्यधर्मपरायणाय नमः
87. ॐ श्री सांई सिद्धेश्वराय नमः
88. ॐ श्री सांई सिद्धसंकल्पाय नमः
89. ॐ श्री सांई योगेश्वराय नमः
90. ॐ श्री सांई भगवते नमः
91. ॐ श्री सांई भक्तवत्सलाय नमः
92. ॐ श्री सांई सत्पुरुषाय नमः
93. ॐ श्री सांई पुरुषोत्तमाय नमः
94. ॐ श्री सांई सत्यतत्त्वबोधकाय नमः
95. ॐ श्री सांई कामादिषड्वैरिध्वंसिने नमः
96. ॐ श्री सांई अभेदानन्दानुभवप्रदाय नमः
97. ॐ श्री सांई समसर्वमतसमताय नमः
98. ॐ श्री सांई दक्षिणामूर्तये नमः
99. ॐ श्री सांई वेन्कटेशरमणाय नमः
100. ॐ श्री सांई अद्भुतानन्तचर्याय नमः
101. ॐ श्री सांई प्रपन्नार्तिहराय नमः
102. ॐ श्री सांई संसारसर्वदुःखक्षयकराय नमः
103. ॐ श्री सांई सर्ववित्सर्वतोमुखाय नमः
104. ॐ श्री सांई सर्वान्तर्बहिस्थिताय नमः
105. ॐ श्री सांई सर्वमंगलकराय नमः
106. ॐ श्री सांई सर्वाभीष्टप्रदाय नमः
107. ॐ श्री सांई समरसन्मार्गस्थापनाय नमः
108. ॐ श्री सांई समर्थसदगुरुसाईनाथाय नमः
बुधवार, 12 जनवरी 2022
श्रीसंकष्टनाशन गणेशस्तोत्रम्
श्रीसंकष्टनाशन गणेशस्तोत्रम्
नारद उवाच –
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यम् आयुः कामार्थसिद्धये॥१॥
प्रथमं वक्रतुण्डञ्च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयकं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥२॥
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४ll
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्धयं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।
संवतसरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः।७॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥८॥
इतिश्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनगणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
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अद्यतन-सूक्ति
"सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।
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अभ्यासप्रश्नपत्रानुसारम् कक्षा - षष्ठी तःअष्टमी पर्यन्तं खण्ड-क (अपठित-अवबोधनम्)-(8अङ्काः) प्रश्न 1.अधोलिख...
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"सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।
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प्रश्न 4. अधोलिखितानां वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत । 1. मोर वन में नाचता है। The peacock dance in the forest. 2. हर्ष प्रतिदिन विद्य...