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बुधवार, 18 मई 2022

संस्कृत-परिचयः


 प्रश्न 13.वर्णों के प्रयत्न कितने प्रकार के होते है? परिभाषा सहित लिखिए।

उत्तर.वर्णों के उच्चारण में होने वाले परिश्रम (मेहनत) को ही प्रयत्न कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(i)  आभ्यन्तर प्रयत्न  - वर्णों के उच्चारण से पूर्व (पहले) होने वाली क्रिया को आभ्यन्तर प्रयत्न कहते हैं।
(ii) बाह्य प्रयत्न - वर्णों के उच्चारण के अन्त में होने वाले प्रयत्न बाह्य प्रयत्न कहते हैं।

प्रश्न 14. आभ्यन्तर प्रयत्न क्या होते हैं? इनकी भेद सहित परिभाषा लिखिए।
उत्तर. वर्णों के उच्चारण से पूर्व (पहले) होने वाली क्रिया को आभ्यन्तर प्रयत्न कहते हैं। इसके चार भेद हैं-
(i) स्पृष्ट - जिन वर्णों के उच्चारण में जीभ मुख के किसी भाग का पूर्ण स्पर्श अर्थात् पूरी तरह से छू जाती है,उनका स्पृष्ट प्रयत्न होता है।
क् से लेकर म् तक  25 वर्णों का प्रयत्न स्पृष्ट है।

(ii) ईषत्स्पृष्ट - ईषत् शब्द का अर्थ है थोड़ा । जिन वर्णों के उच्चारण में जीभ मुख के किसी भाग का थोड़ा-सा स्पर्श करती है तो उनका ईषत्स्पृष्ट प्रयत्न होता है।
य् र् ल् व् का ईषत्स्पृष्ट प्रयत्न  है।

(iii) विवृत -   जिन वर्णों के उच्चारण में मूँह पूरा खुला रहता है,उनका विवृत प्रयत्न होता है। 
सारे स्वरों का प्रयत्न विवृत है।

(iv) ईषद् - विवृत - जिन वर्णों के उच्चारण में मूँह पूरी तरह नहीं खुलता, बल्कि थोड़ा-सा ही खुलता है,उनका ईषत्- विवृत प्रयत्न होता है। 
श् ष् स् ह् का प्रयत्न ईषद्-विवृत है।



सुभाषितम्


        अद्यतनं सुभाषितम् 

साहित्य-संगीत-कला-विहीनः, साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः तद् भागधेयं परमं पशूनाम्।।

अर्थात् जो मनुष्य साहित्य, संगीत,कला से हीन है वह बिना सींग, पूँछ वाला साक्षात् पशु है।वह घास न खाता हुए भी जी रहा है,यह पशुओं का बहुत बड़ा  सौभाग्य है।

संस्कृत-परिचयः


 प्रश्न 11. वर्ण-वियोजन से क्या तात्पर्य है? उदाहरण देकर समझाइए।

उत्तर. जब किसी शब्द के वर्णों (अक्षरों) को अलग-अलग कर दिया जाए तो‌ वह वर्ण-वियोजन या वर्ण-विच्छेद कहलाता है। जैसे-
द्+ए+व्+अः = देवः
ग्+ई+त्+आ = गीता।

 प्रश्न 12. वर्ण -विच्छेद कीजिए-
(i) बलरामः = ब्+अ+ल्+अ+र्+आ+म्+अः
(ii)  शाटिका = श्+आ+ट्+इ+क्+आ
(iii) पुस्तकम् =प्+उ+स्+त्+अ+क्+अ+म्
(iv) आम्रम् = आ+म्+र्+अ+म्
(v) मृदुला = म्+ऋ+द्+उ+ल्+आ।

शनिवार, 14 मई 2022

संस्कृत-परिचयः

 


प्रश्न 9. वर्ण  संयोजन किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर.  विभिन्न वर्णों को क्रम से जोड़कर शब्द बनाने की प्रक्रिया को वर्ण संयोजन या वर्ण संयोग कहते हैं।जैसे-

स्+अ+व्+इ+त्+आ = सविता 

न्+अ+य्+अ+न्+अं = नयनम्।

प्रश्न 10. वर्ण संयोजन (संयोग)कीजिए।

(i)  ग्+अ+ज्+अः = गजः

(ii)  र्+आ+व्+अ+ण्+अः = रावणः

(iii) छ्+आ+त्+र्+अः = छात्रः

(iv) श्+र्+अ+व्+अ+ण्+अः = श्रवणः

(v) ध्+ए+न्+उ = धेनु




शुक्रवार, 13 मई 2022

संस्कृत-परिचयः


 प्रश्न 7. संयुक्त व्यञ्जन किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर.   जब दो व्यञ्जन वर्णों को मिलाकर एक कर दिया जाए  तो‌ संयुक्त व्यञ्जन बनता है। जैसे-
                क्+ष्+अ =क्ष
                 त्+ र्+अ=त्र
                 ज्+ञ्+अ=ज्ञ

प्रश्न 8. संयुक्त व्यञ्जनों का निर्माण कीजिए-
उत्तर.    त्  + र्  +  अ =  त्र
            द्  + य्  + अ =  द्य
        ‌‌‌‌    प्‌  + र्  + अ =  प्र
            ज्+ ञ्  + अ  = ज्ञ
             द् + व्  + अ   =द्व


बुधवार, 11 मई 2022

संस्कृत-परिचयः

 

प्रश्न 5.स्पर्श व्यञ्जन किसे कहते हैं? उनके नाम लिखिए।

उत्तर. जिन व्यञ्जन वर्णों का उच्चारण जीभ के द्वारा मुख के             भिन्न-भिन्न भागों का स्पर्श करने से होता है,वे स्पर्श                   व्यञ्जन कहलाते हैं।इनकी संख्या पच्चीस (25) हैं और             इन्हें पाँच वर्गों में बांटा गया है-
                कवर्ग   -  क्     ख्       ग्         घ्         ङ्
                चवर्ग   -  च्      छ्       ज्        झ्         ञ्
                टवर्ग    -  ट्      ठ्        ड्         ढ्         ण्         
                तवर्ग    -  त्     थ्        द्         ध्         न्
                पवर्ग    -  प्      फ्       ब्         भ्        म्

प्रश्न 6.अयोगवाह की परिभाषा को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर.  कुछ विशेष ध्वनियों को अयोगवाह कहा जाता है।                    इनकी  गणना अर्थात् गिनती न तो स्वरों में हो सकती                है और न ही व्यञ्जनों में।इनका उच्चारण स्वर की                    सहायता के  बिना हो ही नहीं सकता। ये मुख्यतः दो हैं-
                        अं , अः ।

मंगलवार, 10 मई 2022

संस्कृत-परिचयः


 प्रश्न 4. संस्कृतवर्णमाला में स्वर को उच्चारण की दृष्टि से              कितने भागों में बांटा गया है?

  उत्तर.    संस्कृतवर्णमाला में स्वर को उच्चारण की दृष्टि से तीन                भागों में बांटा गया है-

        (1.) हृस्व स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में एकमात्रा का                                    समय लगता है,हृस्व स्वर कहलाते हैं।हृस्व                       ‌‌         स्व‌र पाँच (5)हैं-
                                अ, इ, उ, ऋ, ऌ ।

         (2.) दीर्घ स्वर  - जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्रा का                                     समय अर्थात् हृस्व स्वर से दुगुना समय                                     ‌लगता है, दीर्घ स्वर कहलाते हैं।दीर्घ                                          स्व‌र आठ (8)हैं-
                                  आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ,ओ, औ।

          (3.) प्लुत स्वर -जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्रा का                                      समय अर्थात् हृस्व स्वर से तिगुना समय ‌                                  लगता है, प्लुत स्वर कहलाते हैं। कोई                                      भी स्वर प्लुत-स्वर हो सकता है।लिखने                                     में प्लुत-स्वर को प्रकट करने के लिए                                       उस वर्ण के आगे '३'  लिख दिया                                             जाता  है। जैसे-            
                                    ओ३म्, रा३म, दे३वदत्त आदि।

सोमवार, 9 मई 2022

संस्कृत-परिचयः


             1.वर्ण-विचार

प्रश्न 1. वर्ण किसे  कहते हैं?

उत्तर.  जिस मूल ध्वनि के टुकड़े नहीं किए जा सकते,                 उसे  वर्ण कहते हैं।

         उदाहरणअ,इ,उ,क्,ख्,ग्,क् आदि।


प्रश्न  2. वर्णमाला किसे  कहते हैं? इसमें कुल कितने वर्ण होते               हैं?
उत्तर.  किसी भी भाषा के सब वर्णों के व्यवस्थित समूह को                   वर्णमाला कहते हैं। संस्कृत भाषा की वर्णमाला में कुल               48 वर्ण होते हैं-
            स्वर(13)+व्यंजन (33)+अयोगवाह (2)=48 

प्रश्न 3. संस्कृत भाषा में वर्णों को कितने भागों में बांटा गया है?             उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर. किसी भी भाषा में वर्णों को तीन भागों में बांटा गया है-
       (1.) स्वर -     जिन वर्णों का उच्चारण स्वतन्त्र रूप से हो                                जाता  है, उन्हें स्वर कहते हैं। संस्कृत भाषा                               में  ‌कु‌‌ल तेरह (13) स्वर हैं-
                             अ,आ,इ,ई,उ,आ,ऋ, ॠ,ऌ,ए,ऐ,ओ,औ।
        (2.) व्यञ्जन - जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता                               के बिना नहीं हो सकता, उन्हें व्यञ्जन                                     ‌‌कहते हैं। संस्कृत भाषा में कुल तैंतीस                                     (33)  व्यञ्जन होते हैं-
                               ‌‌क‌वर्ग - क्     ख्    ग्     घ्     ङ् 
                               चवर्ग - च्     छ्     ज्    झ्     ञ्
                               टवर्ग - ट्      ठ्     ड्      ढ्     ण्
                               तवर्ग - त्     थ्     द्      ध्      न्
                               पवर्ग - प्      फ्     ब्     भ्     म्
                  ‌‌ ‌   ‌                   य्     र्     ल्       व्
                                         श्     ष्     स्     ह्।
       (3.) अयोगवाह - ऐसी ध्वनियां जिन्हें न तो स्वर में गिना                                     जाता है और न ही व्यञ्जन में। ये दो हैं-
                                  अं , अः ।



रविवार, 8 मई 2022

श्री साँई🙏💐

 गोदावर्याः प्रवाहो विलसति यदुदक्पाश्व‌‌ती योजनैकं
प्रादुर्भावाऽऽतमभूत्याऽनिशजनितमहे शीलधी क्षेत्रधाम्नि।
सर्वजातीयवंदैर्विविधजनपदादागतैः स्तूयमानः
पूर्णब्रह्मैव साक्षाद्विजयति भुवनं पावयन् सांईनाथः ।

अर्थात् गोदावरी के सुन्दर प्रवाह के पालन एक योजन की दूरी पर श्री साईंनाथ ने मानवता के कल्याण हेतु आविर्भूत होकर अपनी विभूति के द्वारा महिमाशाली शीलधि क्षेत्र को धाम बनाया। विविध स्थानों से आए हुए सर्वजाति के लोगों के द्वारा स्तुति किए जाने वाले साक्षात् पूर्णब्रह्म रूप साईंनाथ,जो सम्पूर्ण संसार को पावन करते हैं, उनकी जय हो।
                   🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐

मंगलवार, 3 मई 2022

💐💐🙏 श्री सांई बाबा🙏💐💐


 "सांई" अर्थात् ईशः, ईश्वर, परमात्मा।इस परमात्मा का आत्मा के रूप में सभी  जीवों में वास है।इसकी अनुभूति देकर एकात्मता की शिक्षा देने के लिए ही  "श्री सांई " का अवतरण हुआ।

सोमवार, 2 मई 2022

सुभाषितम्

  

अद्यतनं सुभाषितम्

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।

प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः।।

अर्थात् ऐसी सत्य बात बोलें जो प्रिय लगे और जो सत्य तो हो किन्तु प्रिय न लगे एसी बात न कहें और जो प्रिय बात झूठ हो तो उसे नहीं बोलना चाहिए,यहीं शाश्वत धर्म है।

सुभाषितम्


         अद्यतनं सुभाषितम् 

निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु,

लक्ष्मीःसमाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।

अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,

न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।।

अर्थात् भले ही नीति में निपुण (लोग) निन्दा करें या स्तुति , लक्ष्मी आ जाये या इच्छानुसार चली जाए,आज ही मरण हो या युगों के बाद (मरें), धैर्यशाली (लोगों) के पैर न्याय के मार्ग से विचलित नहीं होते हैं।

रविवार, 1 मई 2022

श्री सांई बाबा

आज के शेजारती के दर्शन


ॐ शिरडीवासाय विद्महे सच्चिदानन्दाय धीमहि तन्नो सांई प्रचोदयात्।।

सुभाषितम्


 

        अद्यतनं सुभाषितम् 

कल्पद्रुमः कल्पितमेव सूते, 
सा कामधुक् कामितमेव दोग्धि ।
चिन्तामणिः चिन्तितं एव दत्ते ,
सतां हि  सङ्गः सकलं प्रसूते।।

अर्थात् कल्पवृक्ष कल्पना किया हुआ ही देता है, कामधेनु इच्छित वस्तु ही देती है, चिन्तामणि जिसका चिन्तन करते हैं ,वहीं देता है लेकिन सत्संग तो  सब कुछ ही देता है।

अद्यतन-सूक्ति

  "सूर्यवत् उद्भासितुम् इच्छति चेत् तत् वत् तपेत् आद्यम्" अर्थात् (यदि आप) सूर्य के समान चमकना चाहते हैं तो सूर्य के समान तपना सीखिए।